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नज़्म
क्या मसनद तकिया मुल्क मकाँ क्या चौकी कुर्सी तख़्त छतर
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अपने माँ बाप चुने कोई ये मुमकिन ही कहाँ है?
उस पे ये मुल्क भी लाज़िम था कि माँ बाप का घर था इस में
गुलज़ार
नज़्म
मुल्क भर को क़ैद कर दे किस के बस की बात है
ख़ैर से सब हैं कोई दो-चार दस की बात है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
दयार-ए-हिन्द ने जिस दम मिरी सदा न सुनी
बसाया ख़ित्ता-ए-जापान ओ मुल्क-ए-चीं मैं ने