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नज़्म
ज़र दाम-दिरम का भांडा है बंदूक़ सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया जो मुल्कों मुल्कों हांडा है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मग़रिब के मोहज़्ज़ब मुल्कों से कुछ ख़ाकी-वर्दी-पोश आए
इठलाते हुए मग़रूर आए लहराते हुए मदहोश आए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मुल्कों मुल्कों हम घूमे थे बंजारों की मिस्ल
लेकिन इस की सज-धज सच-मुच दिल-दारों की मिस्ल
अहमद फ़राज़
नज़्म
अब हलक़ में उन के जो खाया अटक कर जाएगा
ग़ैर-मुल्कों में न सरमाया भटक कर जाएगा
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
यही क़ौमों को पहुँचाता है बाम-ए-औज-ओ-रिफ़अत पर
यही मुल्कों के अंदर फूँकता है रूह-ए-बेदारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
मुझ से मिलने के लिए आते हैं मुल्कों के रईस
रात दिन लेकिन नज़र में मुझ को रखती है पुलिस
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
निकल कर हिन्द से पहुँची ये अमरीका और अफ़्रीक़ा
समझ लेते हैं हर मुल्कों के बाशिंदे ज़बाँ उर्दू