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नज़्म
इन 'अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यों है
ये तंग-दिली क्यों है ये कम-नज़री क्यों है
असद मुल्तानी
नज़्म
बहुत होंगे मुग़न्नी नग़्मा-ए-तक़लीद यूरोप के
मगर बेजोड़ होंगे इस लिए बे-ताल-ओ-सम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
शायर की नवा हो कि मुग़न्नी का नफ़स हो
जिस से चमन अफ़्सुर्दा हो वो बाद-ए-सहर क्या!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रक़्स-ए-मीना से उठे नग़्मा-ए-रक़्स-ए-बिस्मिल
साज़ ख़ुद अपने मुग़न्नी को गुनहगार करें