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नज़्म
आँख वालो हुस्न-ए-वहदत का तमाशा क्यों न हो
दिल है तो राज़-ए-हक़ीक़त की तमन्ना क्यों न हो
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
क़ल्ब ओ नज़र की ज़िंदगी दश्त में सुब्ह का समाँ
चश्मा-ए-आफ़्ताब से नूर की नद्दियाँ रवाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़माना आया है बे-हिजाबी का आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत था पर्दा-दार जिस का वो राज़ अब आश्कार होगा