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नज़्म
न वो हुस्न न वो मज़ा न वो बोहतात
आप भी सोचते होंगे पंजाब का मुक़द्दमा लड़ते लड़ते
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
क़ाज़ी ने ख़ुदा का मुक़द्दमा सुनने से इंकार कर दिया
मैं ने दरबार में हाज़िरी दी
मुबश्शिर अली ज़ैदी
नज़्म
हो फ़ीस मुक़द्दमा लड़ने की या रिश्वत ठेका देने की
हर एक डिमांड करे केवल दो नंबर में ही लेने की
सदा अम्बालवी
नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
इक बुझी रूह लुटे जिस्म के ढाँचे में लिए
सोचती हूँ मैं कहाँ जा के मुक़द्दर फोड़ूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अब चमकेगा बे-सब्र निगाहों का मुक़द्दर
इस बाम से निकलेगा तिरे हुस्न का ख़ुर्शीद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
है अज़ल से इन ग़रीबों के मुक़द्दर में सुजूद
इन की फ़ितरत का तक़ाज़ा है नमाज़-ए-बे-क़याम