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नज़्म
ये वतन रौंदा है जिस को मुद्दतों अग़्यार ने
जिस पे ढाए ज़ुल्म लाखों चर्ख़-ए-ना-हंजार ने
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
गाड़ी जो चलाना चाहते हो पहिया कोई ना-हमवार न हो
गर दीद का लुत्फ़ उठाना है तो आँख कोई बे-कार न हो
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
गाड़ी जो चलाना चाहते हो पहिया कोई ना-हमवार न हो
गर दीद का लुत्फ़ उठाना है तो आँख कोई बे-कार न हो