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नज़्म
सीना-ए-कोहसार पर चढ़ती हुई बे-इख़्तियार
एक नागन जिस तरह मस्ती में लहराती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जितना नापाक है तन उतना मिरा मन तो नहीं
क्यूँ ठिठकता है झिजकता है मैं नागन तो नहीं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
उस के रसीले नग़्मों पर नागन की तरह लहराती थी
उस की तानों और पलटों पर धुआँ धुआँ हो जाती थी
ख़ातिर ग़ज़नवी
नज़्म
मुझ से पहले कितने शा'इर आए और आ कर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए कुछ नग़्मे गा कर चले गए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जोगी भी जो नगर नगर में मारे मारे फिरते हैं
कासा लिए भबूत रमाए सब के द्वारे फिरते हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
पर मिरे गीत तिरे दुख का मुदावा ही नहीं
नग़्मा जर्राह नहीं मूनिस-ओ-ग़म ख़्वार सही