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नज़्म
तुम को आख़िर मेरे उन के दरमियाँ आने से क्या
मोहसिन-ए-मन वो समझ जाएँगे समझाने से क्या
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
बाद-ए-सबा की मौज से नश-नुमा-ए-ख़ार-अो-ख़स!
मेरे नफ़स की मौज से नश-ओ-नुमा-ए-आरज़ू!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रऊनत ये सिखाती है मुनाफ़िक़ हुक्मरानों को
इसी के बत्न से होते हैं पैदा जब्र-ओ-ज़ुलम-ओ-शर
रहबर जौनपूरी
नज़्म
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
तिरे मुसाफ़िर यहाँ से निकले उफ़ुक़ के पर्बत से उस तरफ़ को
वो ऐसे निकले कि फिर न आए