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नज़्म
दामन-ए-कोहसार से ठंडी हवा आने लगी
नब्ज़-ए-ख़स में ज़िंदगी का ख़ून दौड़ाने लगी
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
हिज्र के आलाम से जब छुट चुकी नब्ज़-ए-नशात
अब हवा ने ख़ार-ओ-ख़स में रूह दौड़ाई तो क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक में तेरे ज़ुहूर से फ़रोग़
ज़र्रा-ए-रेग को दिया तू ने तुलू-ए-आफ़्ताब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
हो न जाए राख जल कर ये दयार-ए-ख़ार-ओ-ख़स
डाल दे बिजली से ले कर उस के सीने में नफ़स
मैकश हैदराबादी
नज़्म
सीखना है लेकिन अब मय-ख़ाना-ए-तामीर में
जुम्बिश-ए-नब्ज़-ए-तमन्ना ओ ख़िराम-ए-दौर-ए-जाम
अर्श मलसियानी
नज़्म
कि शो'ला-ज़न है रग-ए-ख़ार-ओ-ख़स में ज़ौक़-ए-नुमू
न अब वो गर्दिश-ए-अफ़्लाक है न दर्द-ए-हयात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
आज भी नुक्ता-चीं हूँ मैं ख़ल्वतियान-ए-ख़ास का
ख़ल्वतियान-ए-ख़ास का आज भी हूँ मिज़ाज-दाँ