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नज़्म
जो मरहलों में साथ थे वो मंज़िलों पे छुट गए
जो रात में लुटे न थे वो दोपहर में लुट गए
आमिर उस्मानी
नज़्म
मोहसिन नक़वी
नज़्म
सारे ख़्वाबों का गला घूँट दिया है मैं ने
अब न लहकेगी किसी शाख़ पे फूलों की हिना