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नज़्म
वतन का नक्बत ओ अफ़्लास खो दें हम इशारे में
जहाँ ठोकर लगा दें हो वहीं से कान-ए-ज़र पैदा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दौलत-ए-फ़क़्र अमीरों में नहीं मिलती अब
फिरते हैं झाँकते दर-दर फ़ुक़रा तेरे बाद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
बज़्म से गुज़रा कमाल-ए-फ़क़्र दिखलाता हुआ
ताज-ए-शाही पा-ए-इस्ति़ग़ना से ठुकराता हुआ
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
पामाल-ए-फ़क़्र-ओ-ज़िल्लत हैं इज़्ज़-ओ-शान वाले
सैद-ए-ग़म-ओ-अलम हैं तीर-ओ-कमान वाले
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं