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नज़्म
बज़्म-ए-परवीं थी निगाहों में कनीज़ों का हुजूम
लैला-ए-नाज़ बरफ़्गंदा-नक़ाब आती थी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
साज़िशें लाख उड़ाती रहीं ज़ुल्मत की नक़ाब
ले के हर बूँद निकलती है हथेली पे चराग़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
शौकत-ए-संजर-ओ-सलीम तेरे जलाल की नुमूद!
फ़क़्र-ए-'जुनेद'-ओ-'बायज़ीद' तेरा जमाल बे-नक़ाब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तोले हुए है तेग़-ओ-सिनाँ हुस्न-ए-बे-नक़ाब
नावक-फ़गन है जल्वा-ए-पिन्हान-ए-लखनऊ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आमिर रियाज़
नज़्म
डाल कर गुज़रे मनाज़िर पर अंधेरे का नक़ाब
इक नया मंज़र नज़र के सामने लाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
क्यूँ निगाहों पर मिरी छाए हैं आँसू के नक़ाब
इस सवाल-ए-मुस्तक़िल का क्यूँ नहीं मिलता जवाब