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नज़्म
क्या तवक़्क़ो उन से रक्खें फ़ेल जो होते रहे
नक़्ल कर के दाग़ को दामन से जो धोते रहे
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
निकाला मुम्तहिन ने नक़्ल करने से तो बोले हम
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कमरे से हम निकले
हिफ़ज़ान अहमद हाशमी
नज़्म
मुझे तो वो ख़ुद अपने आप से भी अंजान लगता है
जाने क्यों वो मेरी नक़्ल करते कभी थकता ही नहीं
नीलम मालिक
नज़्म
जगमगाते हैं लब-ए-बाम सितारों की तरह
कर गई नक़्ल-ए-ख़ुदा ख़ल्क़-ए-ख़ुदा आज की रात