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नज़्म
नक़्काश-ए-अज़ल मैं तिरी जिद्दत के तसद्दुक़
हर नक़्श से हर नक़्श जुदा देख रहा हूँ
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
पहुँचता है हर इक मय-कश के आगे दौर-ए-जाम उस का
किसी को तिश्ना-लब रखता नहीं है लुत्फ़-ए-आम उस का
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
ऐ क़लम क्या कहूँ मैं सेहर-बयानी तेरी
हाल-ए-दिल अपना सुनाता हूँ ज़बानी तेरी
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
ऐ दिल-ए-बेताब तुझ में है सिफ़त सीमाब की
तेरे क़तरों में हैं कुछ बूँदें शराब-ए-नाब की
साक़िब कानपुरी
नज़्म
ऐ दिल-ए-बेताब तुझ में है सिफ़त सीमाब की
तेरे क़तरों में हैं कुछ बूँदें शराब-ए-नाब की