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नज़्म
कि उन में अहल-ए-हवस की सदा का सीसा है
वो झुकते रहते हैं लब-हा-ए-इक़तिदार की सम्त
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
नश्शा-ए-नर्गिस-ए-ख़ूबान-ए-वतन तुम से है
इफ़्फ़त-ए-माह-ए-जबीनान-ए-वतन तुम से है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कभी रातों में घुला नश्शा-ए-सहबा-ए-बहार
कभी सुब्हों में मिरी गर्मी-ए-हंगाम-ए-नुशूर
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
कर रहे हैं लक्ष्मी-पूजन भी घरों में साहूकार
देव दौलत को समझ बैठे हैं रब्ब-ए-इक़्तिदार
शातिर हकीमी
नज़्म
उन की अज़्मत से सबक़ लें आज अहल-ए-इक़्तिदार
कुर्सियों पर बैठ जाने से नहीं मिलता वक़ार