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नज़्म
मोहम्मद इज़हारुल हक़
नज़्म
ख़ून-ए-दिल की कोई क़ीमत जो नहीं है तो न हो
ख़ून-ए-दिल नज़्र-ए-चमन-बनदी-ए-दौरां कर दे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अभी तहज़ीब-ए-अदल-ओ-हक़ की कश्ती खे नहीं सकती
अभी ये ज़िंदगी दाद-ए-सदाक़त दे नहीं सकती
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रख भी दे अब इस किताब-ए-ख़ुश्क को बाला-ए-ताक़
उड़ रहा है रंग-ओ-बू की बज़्म में तेरा मज़ाक़
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जज़्ब है दिल में मिरे दोनों जहाँ का सोज़-ओ-साज़
बरबत-ए-फ़ितरत का हर नग़्मा सुना सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुलशन-ए-महफ़िल में मानिन्द-ए-सबा आई है तू
सुब्ह-ए-रौशन का पयाम-ए-जाँ-फ़ज़ा लाई है तू
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हुई जाती है नज़्र-ए-शोरिश-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां उर्दू
कहे किस से यहाँ अपने ग़मों की दास्ताँ उर्दू