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नज़्म
अगर इस गुलशन-ए-हस्ती में होना ही मुक़द्दर था
तो मैं ग़ुंचों की मुट्ठी में दिल-ए-बुलबुल हुआ होता
जमील मज़हरी
नज़्म
अपने गुलहा-ए-अक़ीदत पेश करती हूँ तुझे
मुख़्तसर ये है मोहब्बत पेश करती हूँ तुझे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
कहीं अश्जार के ख़ेमों की तनाबें कट जाएँ
ज़र्द पत्ते हैं अभी गुलशन-ए-हस्ती का सिंघार
असलम अंसारी
नज़्म
बदल दे गुलशन-ए-हस्ती के ख़ूनीं लाला-ज़ारों को
बदल दे महफ़िल-ए-इशरत के कोहना बादा-ख़्वारों को