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नज़्म
न सुर्ख़ी-ए-लब-ए-खंजर न रंग-ए-नोक-ए-सिनाँ
न ख़ाक पर कोई धब्बा न बाम पर कोई दाग़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कहीं नोक-ए-सिनाँ के इस्म ओ अफ़्सूँ से
लहू की बूँद में तस्लीम की किरनें जगाता है
आफ़ताब इक़बाल शमीम
नज़्म
अर्श मलसियानी
नज़्म
ऐ कि सीने में तिरे अरमान-ए-गुल है बे-क़रार
देखना बेदाद-ए-नोक-ए-ख़ार से भी होशियार
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
तुझे ऐ दिल अदू को हो अगर चुभती हुई कहना
तो हर हर हर्फ़ में तेज़ी-ए-नोक-ए-ख़ार पैदा कर