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नज़्म
माँ अक्सर मेरी खाँसी पर तुम्हारा धोखा खाती है
ये बड़ की मेरी इक आदत तुम्हारी सी बताती है
मनोज अज़हर
नज़्म
ज़र्द परचम उड़ाता हुआ लश्कर-ए-बे-अमाँ गुल-ज़मीनों को पामाल करता रहा
और हवा चुप रही
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
दरिया में शेर ख़ाक उड़ाता था नाव पर
बिस्मिल दो-ज़ानू बैठा था पुश्त-ए-बिलाव पर