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नज़्म
साँस क्या उखड़ी कि हक़ के नाम पर मरने लगे
नौ-ए-इंसाँ की हवा-ख़्वाही का दम भरने लगे
जोश मलीहाबादी
नज़्म
चलो कि चल के चराग़ाँ करें दयार-ए-हबीब
हैं इंतिज़ार में अगली मोहब्बतों के मज़ार