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नज़्म
वो हँसती हो तो शायद तुम न रह पाते हो हालों में
गढ़ा नन्हा सा पड़ जाता हो शायद उस के गालों में
जौन एलिया
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
इसी के बीच में है एक पेड़ पीपल का
सुना है मैं ने बुज़ुर्गों से ये कि उम्र उस की
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ज़रा होंटों को जुम्बिश और लफ़्ज़ों को रिहाई दो
अकेला पड़ गया हूँ मैं ज़रा मेरी सफ़ाई दो
मनोज अज़हर
नज़्म
वो इक ऐसी आग है जिस को सिर्फ़ दहकने से मतलब है
वो इक ऐसा फूल है जिस पर अपनी ख़ुशबू बोझ बनी है