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नज़्म
पल दो पल में कुछ कह पाया इतनी ही स'आदत काफ़ी है
पल दो पल तुम ने मुझ को सुना इतनी ही ‘इनायत काफ़ी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
पिया पे ये गदाज़िश ये गुमाँ और ये गिले कैसे
सिला-सोज़ी तो मेरा फ़न है फिर इस के सिले कैसे
जौन एलिया
नज़्म
न ढूँड उस चीज़ को तहज़ीब-ए-हाज़िर की तजल्ली में
कि पाया मैं ने इस्तिग़्ना में मेराज-ए-मुसलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुना है आलम-ए-बाला में कोई कीमिया-गर था
सफ़ा थी जिस की ख़ाक-ए-पा में बढ़ कर साग़र-ए-जम से