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नज़्म
कि टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें बनी थीं कुछ जिस में
ये हर्फ़ थे जिन्हें मैं ने लिक्खा था पहले-पहल
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
चली थीं अपने पैरों पर जो तुम पहले-पहल बेटा
मुझे ऐसा लगा था चल पड़ी दिल की मिरे धड़कन
अफ़ीफ़ सिराज
नज़्म
हमें ये फ़ख़्र हासिल है पयाम-ए-नूर लाए हैं
ज़मीं पहले-पहल चूमी है जिस ने वो किरन हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
सड़क जो आती है छावनी से चहल-पहल उस पे ख़ूब ही है
निकल के गुंजान बस्तियों से बरा-ए-तफ़रीह सब हैं आए