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नज़्म
जितने बरस रोते रोते बूढ़ी माँ ने काटे थे
सारे दूल्हे दरियाओं से हार पहने सज-धज के बाहर आएँगे
ज़ाहिद मुख़्तार
नज़्म
मिरे शिकारियो अमान चाहता हूँ मैं
बस अब सलामती-ए-जाँ की हद तलक उड़ान चाहता हूँ मैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
दिल है पहलू में तो पैदा शेवा-ए-तुरकाना कर
जौर हफ़्त-अफ़्लाक के होते रहें परवा न कर