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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
इन्हीं फ़ज़ाओं में बचपन पला था 'ख़ुसरव' का
इसी ज़मीं से उठे 'तानसेन' और 'अकबर'
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
लेकिन हम इन फ़ज़ाओं के पाले हुए तो हैं
गिर्यां नहीं तो याँ से निकाले हुए तो हैं