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नज़्म
जहाँ जंगल हुआ करते थे और बारिश धनक ले कर उतरती थी
जहाँ बरसात में कोयल, पपीहे चहचहाते थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
दान के पैसे गिनता पंडित ताँबा सूरज सांझी का
जमुना पर मीनार क़िला के गुम्बद का तिरछा साया
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
कई दिन से मुसलसल देखती हूँ उन को सपने में
पपीहे सच बता क्या आने वाले हैं मिरे साजन
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
कितनी वीरान है उजड़े हुए ख़्वाबों की मुंडेर
भूली-बिसरी हुई यादों के पपीहे चुप हैं
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
ख़ुश-आमदीद बोलें चिड़ियाँ चहक चहक कर
ख़ुशियों में गुम पपीहे सब ग़ुल मचा रहे हैं
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
कागा के काएँ काएँ से दिल को तो आस भी हुई
पी जो कहा पपीहे ने दिल की मिरे ख़लिश बढ़ी