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नज़्म
फ़न था इक मतलब-बरारी लोग थे मतलब-परस्त
इस-क़दर बिगड़ा हुआ था ज़िंदगी का बंदोबस्त
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
जहाँ पे अमरद-परस्त बैठे सफ़ा-ए-दिल की नमाज़ें पढ़ कर
ख़याल-ए-दुनिया से जाँ हटाते
अली अकबर नातिक़
नज़्म
''निगह-ए-जल्वा-परस्त और नफ़स-ए-सिद्क़-गुज़ीं''
इक ''उभय-चंद'' मिरे नामा-ए-आमाल में है