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नज़्म
फ़र्दा महज़ फ़ुसूँ का पर्दा, हम तो आज के बंदे हैं
हिज्र ओ वस्ल, वफ़ा और धोका सब कुछ आज पे रक्खा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
क़ुर्ब-ए-चश्म-ओ-गोश से हम कौन सी उलझन को सुलझाते रहे!
कौन सी उलझन को सुलझाते हैं हम?
नून मीम राशिद
नज़्म
फिर कफ़-आलूदा ज़बानें मदह ओ ज़म की कुमचियाँ
मेरे ज़ेहन ओ गोश के ज़ख़्मों पे बरसाने लगीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अब तक असर में डूबी नाक़ूस की फ़ुग़ाँ है
फ़िरदौस-ए-गोश अब तक कैफ़िय्यत-ए-अज़ाँ है