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नज़्म
तड़प सेहन-ए-चमन में आशियाँ में शाख़-सारों में
जुदा पारे से हो सकती नहीं तक़दीर-ए-सीमाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ
है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
तिरे पूरे बदन पर इक मुक़द्दस आग का पहरा है
जो तेरी तरफ़ बढ़ते हुए हाथों के नाख़ुन रोक लेता है
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
आज से मैं अपने गीतों में आतिश-पारे भर दूँगा
मद्धम लचकीली तानों में जीवट धारे भर दूँगा