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नज़्म
पहाड़ी के उस पार कोई धनक है नहीं है
धनक के सिरे पर कोई जादू-नगरी परिस्ताँ ख़ज़ाना मिरा मुंतज़िर है
अज़रा नक़वी
नज़्म
परिस्तान-ए-लताफ़त की तू इक रंगीं कहानी है
जवाँ फ़ितरत का तू इक गुम-शुदा ख़्वाब-ए-जवानी है
नय्यर वास्ती
नज़्म
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशाँ क्यूँ हो
जगमगाते हुए लम्हों से गुरेज़ाँ क्यूँ हो
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
परेशाँ हूँ मैं मुश्त-ए-ख़ाक लेकिन कुछ नहीं खुलता
सिकंदर हूँ कि आईना हूँ या गर्द-ए-कुदूरत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गिरते हैं इक फ़र्श-ए-मख़मल बनाते हैं जिस पर
मिरी आरज़ूओं की परियाँ अजब आन से यूँ रवाँ हैं