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नज़्म
हुए अहरार-ए-मिल्लत जादा-पैमा किस तजम्मुल से
तमाशाई शिगाफ़-ए-दर से हैं सदियों के ज़िंदानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अंजुम-ए-कम-ज़ौ गिरफ़्तार-ए-तिलिस्म-ए-माहताब
देखता क्या हूँ कि वो पैक-ए-जहाँ-पैमा ख़िज़्र
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस गुल-कदा-ए-पारीना में फिर आग भड़कने वाली है
फिर अब्र गरजने वाले हैं फिर बर्क़ कड़कने वाली है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
लो वो चाह-ए-शब से निकला पिछले-पहर पीला महताब
ज़ेहन ने खोली रुकते रुकते माज़ी की पारीना किताब
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मुझ को है फ़ख़्र कि उस क़ौम से निस्बत है मिरी
फ़ातिमा मरियम-ओ-सीता सी हैं रहबर जिस की
हिना रिज़्वी
नज़्म
ये पारीना फ़साने मौज-हा-ए-ग़म में खो जाएँ
मिरे दिल की तहों से तेरी सूरत धुल के बह जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
हर इक शो'बे में पाओगे यहाँ तुम पार्टी-बाज़ी
यहाँ रहती है आपस में हमेशा तुर्की-ओ-ताज़ी
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
जादा-पैमा के लिए ख़िज़्र हो तुम ये रहज़न
तुम हो ख़िर्मन के निगहबान ये बर्क़-ए-ख़िर्मन