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नज़्म
जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बंधन टूटेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जो भी हो अकेले इंसाँ से दुनिया की बग़ावत कुछ भी नहीं
तन्हा जो किसी को पाएँगे ताक़त के शिकंजे जकड़ेंगे
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
बाद-ए-बहारी बन के चलेंगे सरसों बन कर फूलेंगे
ख़ुशियों के रंगीं झुरमुट में रंज-ओ-मेहन सब भूलेंगे
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ज़ुल्म कहीं भी हो हम उस का सर ख़म करते जाएँगे
महलों में अब अपने लहू के दिए न जलने पाएँगे
हबीब जालिब
नज़्म
तिरी रानाइयों की तमकनत को भूल जाएँगी
पुकारेंगे तुझे तो लब कोई लज़्ज़त न पाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किस को समझाएँ उसे खोदें तो फिर पाएँगे क्या
हम अगर रिश्वत नहीं लेंगे तो फिर खाएँगे क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ग़म-ए-दौराँ से जब भी फ़ुर्सत-ए-यक-लम्हा पाएँगे
तिरी यादों में खो जाएँगे ख़ुद को भूल जाएँगे
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
रंग लाने को है मज़दूरों का जोश-ए-इंतिक़ाम
गिर पड़ेंगे ख़ौफ़ से ऐवान-ए-इशरत के सुतूँ