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नज़्म
मची है हर तरफ़ क्या क्या सलोनों की बहार अब तो
हर इक गुल-रू फिरे है राखी बाँधे हाथ में ख़ुश हो
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मुर्ग़ान-ए-बाग़ बन कर उड़ते फिरें हवा में
नग़्मे हों रूह-अफ़्ज़ा और दिल-रुबा सदाएँ
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
दीवाना-वार हम भी फिरें कोह-ओ-दश्त में
दिल-दादगान-ए-शोला-ए-महमिल में हम भी हों
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बच्चे गलियों में फिरें आवारा कुत्तों की तरह
और सड़कों पर बिकें कुछ जिस्म फूलों की तरह
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
टूटा टूटा हुआ दिल ले के फिरें गलियों में
कच्ची मिट्टी के खिलौनों की दुकाँ देख आएँ
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मगर गुज़ारने वालों के दिन गुज़रते हैं
तिरे फ़िराक़ में यूँ सुब्ह ओ शाम करते हैं