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नज़्म
तुम डर में बच्चे जन्ती हो इसी लिए आज तुम्हारी कोई नस्ल नहीं
तुम जिस्म के एक बंद से पुकारी जाती हो
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
एक ही चीख़ ने उस की पल में सास बहू का झगड़ा चुकाया
दौड़ी बहू मिरे लाल हुआ क्या सास पुकारी हाए ख़ुदाया
मीराजी
नज़्म
वहाँ की फ़सलें ज़क़्क़ूम की हैं
हवाएँ काली हैं राख उड़ कर खंडर में ऐसे फुँकारती है
अली अकबर नातिक़
नज़्म
कुछ पिएँ और कुछ बचाएँ तिश्ना-कामों के लिए
सादगी का नाज़ भी अंदाज़-ए-पुरकारी भी हो