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नज़्म
हश्र के दिन तक फला-फूला रहे तेरा चमन
तेरे पैमानों में लर्ज़ां है शराब-ए-इल्म-ओ-फ़न
जोश मलीहाबादी
नज़्म
बज़्म में पढ़ता हूँ मैं नथुने फुला कर चीख़ कर
और इस से पेशतर तक़रीर फ़रमाता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
ख़ुदा उस ख़ित्ता-ए-गुलज़ार को फूला फला रखे
जहाँ हम नौ-ब-नौ तुख़्म-ए-मोहब्बत बो के आए हैं