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नज़्म
अब कोई घड़ी पल सा'अत में ये खेप बदन की है कफ़नी
क्या थाल कटोरी चाँदी की क्या पीतल की ढिबिया-ढकनी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मिरे चेहरे मिरे बाज़ू पे लू और धूप रहती है
गले में सिर्फ़ पीतल का ये चंदन हार काफ़ी है
सलाम मछली शहरी
नज़्म
पीतल के कुछ सारस बगुले जादू का संदूक़
खेल खिलौनों से हैं सजे सब कमरे और दालान
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
नज़्म
उस के वास्ते ऐमन इक पीतल का पिंजरा लाए थे
आपी ने भी तीन कटोरे चाँदी के मँगवाए थे