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नज़्म
साहिर लुधियानवी
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साहिर लुधियानवी
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हमीं ने घोंट दिया जिस के बचपने का गला
जो खाते-पीते घरों के हैं बच्चे उन को भी क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
पीते हैं मय के प्याले और देखते हैं जंगले
कितने फिरे हैं बाहर ख़ूबाँ को अपने संग ले
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
इस गिरानी में भला क्या ग़ुंचा-ए-ईमाँ खिले
जौ के दाने सख़्त हैं ताँबे के सिक्के पिल-पिले
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सुनते हैं मज़दूर से मालिक का मोहरा पिट गया
''एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था वो भी मिट गया''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
जहाँ ज़िंदगी के रसीदा शगूफ़ों के सीनों
से ख़्वाबों के रम-दीदा ज़ंबूर लेते हैं रस और पीते हैं वो
नून मीम राशिद
नज़्म
मुफ़्लिसी से करते हैं जब आदमियत को जुदा
जब लहू पीते हैं तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के ख़ुदा
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
चिड़िया बाजी सभा में नाचे ख़ुशी से छम छम छम
मोटी बतख़ चोंच से ढोलक पीटे धम धम धम