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नज़्म
साहिर लुधियानवी
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साहिर लुधियानवी
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हमीं ने घोंट दिया जिस के बचपने का गला
जो खाते-पीते घरों के हैं बच्चे उन को भी क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मगर ये मय-कश कभी किसी के लहू से सैराब कब हुआ है
हमेशा आँसू पिए हैं उस ने हमेशा अपना लहू पिया है
तारिक़ क़मर
नज़्म
पीते हैं मय के प्याले और देखते हैं जंगले
कितने फिरे हैं बाहर ख़ूबाँ को अपने संग ले
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सजाएँ आज फिर महफ़िल कहीं पीने पिलाने की
मैं तुम को आज अपनी कुछ नई बातें बताऊँगा