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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
प्यार पर बस तो नहीं है मिरा लेकिन फिर भी
तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो बर्फ़-बारियाँ हुईं कि प्यास ख़ुद ही बुझ गई
मैं साग़रों को क्या करूँ कि प्यास की तलाश है
आमिर उस्मानी
नज़्म
मुफ़्लिस का हाल आह बयाँ क्या करूँ मैं यार
मुफ़्लिस को इस जगह भी चबाती है मुफ़्लिसी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ये किताब ओ ख़्वाब के दरमियान जो मंज़िलें हैं मैं चाहता था
तुम्हारे साथ बसर करूँ
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
से बढ़ के कौन सी शय और हो ही सकती है
इन्ही फ़सानों में पिन्हाँ थे ज़िंदगी के रुमूज़