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नज़्म
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
नज़्म
ख़ुश हूँ फ़िराक़-ए-क़ामत-ओ-रुख़्सार-ए-यार से
सर्व-ओ-गुल-ओ-समन से नज़र को सताएँ हम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
शिआर की जो मुदारात-ए-क़ामत-ए-जानाँ
किया है 'फ़ैज़' दर-ए-दिल दर-ए-फ़लक से बुलंद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तज़्किरे हैं क़द-ओ-गेसू के बहर-तौर अज़ीज़
मुफ़्लिसी में दिल-ए-गुलबार कहाँ से लाऊँ
बेबाक भोजपुरी
नज़्म
जो गोशे गोशे में पिन्हाँ है उस की राह-ए-गुरेज़
ख़याल गुम हुआ जाता है क़द्द-ए-रा'ना में
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
जो गोशे गोशे में पिन्हाँ है उस के राह-ए-गुरेज़
ख़याल गुम हुआ जाता है क़द्द-ए-रा'ना में