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नज़्म
अभी दिमाग़ पे क़हबा-ए-सीम-ओ-ज़र है सवार
अभी रुकी ही नहीं तेशा-ज़न के ख़ून की धार
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
क्यूँ मुसलमानों में है दौलत-ए-दुनिया नायाब
तेरी क़ुदरत तो है वो जिस की न हद है न हिसाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बहर-ए-तूफ़ानी-ए-दुनिया में हैं हम सर-गश्ता
मौज-ए-ग़म में है जहाज़ अपना थिएटर खाता
सूरज नारायण मेहर
नज़्म
फिर भी मैं ख़ुश हूँ कि इस कार-गह-ए-दुनिया में
तुम से मिलने के लिए वक़्त ने रस्ता तो दिया