aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "qashqa-e-numaaish"
ये हुस्न ओ नुमाइश जारी हैइस एक झलक को छिछलती नज़र से देख के जी भर लेने दो
अँधेरे सेकशीद-ए-सुब्ह की
तो फिरकशीद-ए-जाँ से
जू-ए-ग़मलरज़ती कश्ती-ए-एहसास
कश्ती-ए-तमन्ना भीपहली बार बिछड़े थे
बढ़ो, नौ-तवंगर गदाओन कश्कोल-ए-दरयूज़ा-गर्दी छुपाओ
पटख़ना चाहा कश्कोल-ए-मलाललर्ज़ा इक गोया हुआ
जश्न-ए-बहाराँ में आजक़सीदा-ए-गुल छेड़ें
पानी की लय पे गाताइक कश्ती-ए-हवा में
उसे कश्फ़-ए-सहर जो भी हुआसूरज से ख़ाली है
कश्कोल-ए-दुआ उठा के निकलाशायर था सदा लगा के निकला
किस तरह रेत के समुंदर मेंकश्ती-ए-ज़ीस्त है रवाँ सोचो
कश्ती-ए-दिल को जज़्बों के सैलाब सेखींच लाया हूँ मैं
तबाही में है कश्ती-ए-क़ौम आओबचाओ इसे डूबने से बचाओ
कशती-ए-एहसास को बारीक और बद-रंग लहरों में उतारासुब्ह तक इस कशती-ए-एहसास पर
चला आ कि मेरी निदा में भीइसी कश्फ़-ए-ज़ात की आरज़ू
जो लिखेगा क़सीदा-ए-शाहीउस को ताईद-ए-शाह भी होगी
कश्ती-ए-हक़ का ज़माने में सहारा तू हैअस्र-ए-नौ-रात है धुँदला सा सितारा तू है
मेरी हम-ज़ाद!हम कश्ती-ए-ज़ीस्त के बादबाँ की तनाबें हैं दो
ख़ुदा जाने कब तकहम इन दश्त-हाथों में कश्कोल-ए-उम्मीद थामे
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