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नज़्म
सड़ चुके इस के अनासिर हट चुका सोज़-ए-हयात
अब तुझे फ़िक्र-ए-इलाज-ए-दर्द-ए-इंसाँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
लिक्खा हुआ है क़िस्मत-ए-उम्मीद-वार में
''उड़ती फिरेगी ख़ाक तिरी कू-ए-यार में''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मक़ाम-ए-अज़्मत-ए-इंसाँ को तू ने फ़ाश किया
जुमूद-बस्ता ग़ुलामी को पाश-पाश किया
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
है जहान-ए-गुज़राँ ख़्वाब का बिल्कुल नक़्शा
दीदा-ए-हज़रत-ए-इंसाँ के लिए धोका सा