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नज़्म
क्यूँ मुसलमानों में है दौलत-ए-दुनिया नायाब
तेरी क़ुदरत तो है वो जिस की न हद है न हिसाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ुदा-ए-लम-यज़ल का दस्त-ए-क़ुदरत तू ज़बाँ तू है
यक़ीं पैदा कर ऐ ग़ाफ़िल कि मग़लूब-ए-गुमाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये सब कुछ है मगर हस्ती मिरी मक़्सद है क़ुदरत का
सरापा नूर हो जिस की हक़ीक़त मैं वो ज़ुल्मत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़िंदगी महबूब ऐसी दीदा-ए-क़ुदरत में है
ज़ौक़-ए-हिफ़्ज़-ए-ज़िंदगी हर चीज़ की फ़ितरत में है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरे फ़िरदौस-ए-तख़य्युल से है क़ुदरत की बहार
तेरी किश्त-ए-फ़िक्र से उगते हैं आलम सब्ज़ा-वार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मीराजी
नज़्म
तिफ़्ल-ए-बाराँ ताजदार-ए-ख़ाक अमीर-ए-बोस्ताँ
माहिर-ए-आईन-ए-क़ुदरत नाज़िम-ए-बज़्म-ए-जहाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अस्बाब-ए-ज़ाहिरी में न इन पर करो नज़र
क्या जाने क्या है पर्दा-ए-क़ुदरत में जल्वा-गर
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
'इल्म में दौलत भी है क़ुदरत भी है लज़्ज़त भी है
एक मुश्किल है कि हाथ आता नहीं अपना सुराग़