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नज़्म
कौन भूले अमावस की रातों सी ज़ुल्फ़ों की रा’नाइयाँ
कौन दिल से हया-दार आँखों की यादें मिटा दे
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
मैं जब भी तेरे घर के पास से हो कर गुज़रता हूँ
मुझे खोई हुई रानाइयाँ आवाज़ देती हैं