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नज़्म
हाथ के एक इशारे से पानी में आग लगा सकता हूँ
राख के ढेर से ताज़ा रंगों वाले फूल उगा सकता हूँ
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
कि जिस के रंगों का फ़ल्सफ़ा ही कभी किसी पर नहीं खुला है
ये फ़ल्सफ़ा जो फ़रेब-ए-पैहम का सिलसिला है