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नज़्म
यही वो मंज़िल-ए-मक़्सूद है कि जिस के लिए
बड़े ही अज़्म से अपने सफ़र पे निकले थे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
नक़्श-ए-पा तेरा रहा मंज़िल-नुमा तहज़ीब का
राहत-ए-अर्ज़-ओ-समा पिन्हाँ तिरी मंज़िल में है