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नज़्म
इसी बाइस मैं हूँ अम्बोह की लज़्ज़त से बे-माया
मगर तुम इक दो-पाया रास्त क़ामत हो के दिखलाना
जौन एलिया
नज़्म
बया पैदा ख़रीदा रास्त जान-ए-ना-वान-ए-रा
पस अज़ मुद्दत गुज़ार उफ़्ताद बर्मा कारवाने रा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
न मिरा मकाँ ही बदल गया न तिरा पता कोई और है
मिरी राह फिर भी है मुख़्तलिफ़ तिरा रास्ता कोई और है
दिलावर फ़िगार
नज़्म
जीत का पड़ता है जिस का दानों वो कहता है यूँ
सू-ए-दस्त-ए-रास्त है मेरे कोई फ़र्ख़न्दा-पय
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
रास्त-गुफ़्तार कि हैं नाक़िद-ए-औलाद-ए-फ़रंग
वक़्त कहता है कि फिर दाख़िल-ए-ज़िंदाँ होंगे
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
काश सर-चश्मा-ए-अव्वल से उतर आए कोई रास्त किरन
जो मिरी रूह की ज़ुल्मत में उजाला कर दे
ख़ुर्शीद रिज़वी
नज़्म
बिमल कृष्ण अश्क
नज़्म
माहिर-ए-‘इल्म-ओ-हुनर शेवा-बयाँ शीरीं-मक़ाल
रास्त-बाज़ू सुल्ह-जू पाकीज़ा-खू रौशन-ख़याल
बर्क़ देहलवी
नज़्म
ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़