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नज़्म
और तुझ से हम-सुरूद-ए-नग़मा-ए-एजाज़ है
बज़्म-ए-क़ुदरत में तिरी गोया शरीक-ए-राज़ है
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
इक राज़-ए-तमन्ना कि जो होंटों पे चला आए
इक हर्फ़-ए-मुकर्रर कि जो बातों में कहा जाए
अख़लाक़ अहमद आहन
नज़्म
ज़ोहरा कहने लगी ऐ बज़्म फ़लक के क़ासिद
ज़र्द रौ पहली ही मंज़िल में हुआ तो क्यूँ कर
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
नज़्म
तेरी नज़र में है तमाम राज़-ए-हयात क़ौम का
तेरे नफ़स से मुर्तइश राज़-ए-हयात क़ौम का
जौहर निज़ामी
नज़्म
हर मसर्रत में है राज़-ए-ग़म-ओ-हसरत पिन्हाँ
क्या सुनोगी मिरी मजरूह जवानी की पुकार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
क्यों तअम्मुल है तुझे रोज़-ए-अजल आने में
ज़ीस्त का लुत्फ़ मिलेगा मुझे मर जाने में