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नज़्म
कोई क़ुव्वत उस की सद्द-ए-राह बन सकती नहीं
वक़्त का फ़रमान जब आता है बन कर इंक़िलाब
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
सो अब वो सब राख बन चुके हैं
मैं रफ़्तगाँ की उदास यादों के साए में दिन गुज़ारता हूँ
असअ'द बदायुनी
नज़्म
वो मेरे मौला की ख़ुशबुओं में रचा-बसा था
वो उन के दामान-ए-आतिफ़त में पला बढ़ा था
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
चराग़-ए-राह बन कर रहबरी की जिस सहीफ़े ने
वो जुज़दानों के शीशे में चराग़-ए-बाम है साक़ी
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
तुझे जलना था तो जलता चराग़-ए-राह बन कर तू
मिला क्या है बुतों के 'इश्क़ में दिल को जलाने में
सदा अम्बालवी
नज़्म
उफ़ुक़ गर्द-ओ-ग़ुबार-ए-राह बन कर डूब जाते हैं
वो देखो पौ फटी अँधियारे जादों के शिगाफ़ों से
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
उफ़ुक़ गर्द-ओ-ग़ुबार-ए-राह बन कर डूब जाते हैं
वो देखो पो फटी अँधियारे जादों के शिगाफ़ों से
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
सर से पा तक एक ख़ूनीं राग बन कर आऊँगा
लाला-ज़ार-ए-रंग-ओ-बू में आग बन कर आऊँगा